अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस और महिला स्वास्थ्य: सम्मान, सशक्तिकरण, और स्वास्थ्य
Dr DEEPAK KUMAR , CONSULTANT CARDIOLOGIST, MBBS , MD (MEDICINE), DM (CARDIOLOGY)
3/7/20251 मिनट पढ़ें


"नारी तू है नारायणी, तुझमें हैं सब शक्तियाँ अपार..." यह पंक्तियाँ महिलाओं की अदम्य शक्ति को दर्शाती हैं। लेकिन आज भी समाज में महिलाओं को स्वास्थ्य, शिक्षा, और समानता जैसे मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) न केवल महिलाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने का दिन है, बल्कि यह उनकी चुनौतियों को समझने और समाधान खोजने का भी अवसर है। इस लेख में हम महिला दिवस के इतिहास, भारतीय संदर्भ, और महिला स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: इतिहास और महत्व
इतिहास:
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 20वीं सदी में श्रमिक आंदोलनों से हुई। 1908 में न्यूयॉर्क में हज़ारों महिलाओं ने काम के घंटे कम करने, बेहतर वेतन, और मतदान के अधिकार के लिए मार्च निकाला। 1910 में कोपेनहेगन में हुए अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में क्लारा ज़ेटकिन ने इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रस्ताव रखा। 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे आधिकारिक मान्यता दी।
थीम और उद्देश्य:
हर वर्ष एक थीम के साथ महिला दिवस मनाया जाता है, जैसे 2023 की थीम "डिजिटल युग में समानता" (Innovation and Technology for Gender Equality)। इस दिन का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक उपलब्धियों को सलाम करना तथा लैंगिक असमानता को चुनौती देना है।
भारत में महिला दिवस: प्रगति और चुनौतियाँ
भारत में यह दिन शिक्षा, रोज़गार, और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के संकल्प के साथ मनाया जाता है। इंदिरा गांधी, कल्पना चावला, मैरी कॉम, और सावित्रीबाई फुले जैसी महिलाओं ने देश को गौरवान्वित किया है। हालाँकि, दहेज प्रथा, लैंगिक हिंसा, और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच जैसी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं।
आँकड़े चिंताजनक:
NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, 15-49 आयु वर्ग की 57% महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।
मातृ मृत्यु दर (MMR) 2020 में 97 प्रति लाख जीवित जन्म थी, जो अब भी वैश्विक औसत से अधिक है।
महिला स्वास्थ्य: चुनौतियाँ और समाधान
1. शारीरिक स्वास्थ्य
कुपोषण और एनीमिया: ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को पोषणयुक्त भोजन न मिलना।
प्रजनन स्वास्थ्य: मासिक धर्म से जुड़ी अशिक्षा, गर्भनिरोधकों तक सीमित पहुँच।
कैंसर: सर्वाइकल और ब्रेस्ट कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन नियमित जाँच का अभाव।
समाधान:
स्कूलों में पोषण कार्यक्रम और आयरन टैबलेट वितरण।
ASHA कार्यकर्ताओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य जागरूकता।
2. मानसिक स्वास्थ्य
तनाव के कारण: पारिवारिक दबाव, कार्यस्थल पर भेदभाव।
सामाजिक कलंक: मानसिक बीमारियों को लेकर झिझक, परामर्श सेवाओं का अभाव।
समाधान:
कॉर्पोरेट क्षेत्र में महिलाओं के लिए काउंसलिंग सेवाएँ।
मीडिया के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य पर खुली चर्चा।
सरकारी योजनाएँ और पहल
आयुष्मान भारत योजना: गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा।
सुकन्या समृद्धि योजना: बालिकाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए बचत।
मिशन इंद्रधनुष: गर्भवती महिलाओं और नवजातों का टीकाकरण।
मनोदर्पण अभियान: कोविड काल में मानसिक स्वास्थ्य सहायता।
समाज और परिवार की भूमिका
शिक्षा: लड़कियों की शिक्षा पर जोर देकर उन्हें स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाना।
आर्थिक स्वतंत्रता: स्वरोज़गार योजनाएँ (जैसे मुद्रा लोन) महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं।
सांस्कृतिक बदलाव: मासिक धर्म को लेकर जागरूकता फैलाना (पैडमैन अभियान)।
निष्कर्ष
महिला दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक प्रतिबद्धता है—महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, और सुरक्षा के प्रति। जरूरत है कि हम "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" को केवल नारा न बनने दें, बल्कि इसे ज़मीन पर उतारें। आइए, महिलाओं को उनका अधिकार दें: स्वस्थ जीवन का, सम्मान का, और स्वतंत्रता का।
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